अध्याय - 1
'श्यामाप्रसाद ने क्या जवाब दिया आपका ? ' जानकी देवी ने अपने पति रघुनाथ से पूछा ।
'तुम जानती हो जवाब क्या आएगा ,मेरी मानो तो उम्मीद छोड़ दो '। रघुनाथ् ने अपने घर के सामने लगे नीम के पेड़ के नीचे चारपाई पर लेटते हुए कहा।
'श्यामाप्रसाद बाकी लोगों के जैसा नहीं है,मैं कहती हु आप उसने बात क्यों नहीं करते ?' जानकी ने जोर देते हुए कहा।
'तुम समझने की कोशिश करो जानकी यह इतना आसान नहीं है ,शादी -ब्याह कोई मजाक की बात नहीं ' रघुनाथ ने गंभीरता से कहा।
'बात करने में क्या हर्ज़ है,आप देखना वह हमरी बात नहीं टालेंगे आप बस उनसे मेरे सामने बात करो ' जानकी ने रघुनाथ की चारपाई के पास बैठते हुए कहा।
'ठीक हैं,तुम्हारी मन की शांति के लिए बात कर लेता हूँ पर मुझे पता है वो इंकार ही करेंगे '।रघुनाथ ने अपने कमीज की जेब से मोबइल फोन निकलते हुए कहा।
'हाँ मेरे मन की शांति के लिए ही सही आप बस बात करो ' जानकी ने आत्मविस्वास से कहा। जानकी को पूरा यकीं था कि श्यामाप्रसाद उनकी बात को कभी नहीं ठूकरायेगा आखिर उस पर रघुनाथ के इतने अहसान जो है ।
'राम -राम श्यामाप्रसाद जी ,कैसे हो '? रघुनाथ ने मुस्कुराते फोन पर कहा।
'राम - राम काका,बस आपकी कृपा से सब कुशल -मंगल है । घर पर सब कैसे है ? ' श्यामाप्रसाद ने बड़े आदर से पूछा।
'बस भगवान की कृपा से सब बढ़िया है ,और कहो खेतीबाड़ी कैसी है ?'
'खेती का क्या कहुँ काका बारिश अच्छी नहीं हुई तो इस बार लगता है मेहनत बेकार गई 'श्यामप्रसाद ने हताशा से कहा।श्यामाप्रसाद पास के गाँव का किसान है,जिसकी ज़मीन पर् उस गाँव के ठाकुर ने कब्ज़ा कर लिया था जिसे रघुनाथ ने छूडवाया था ।तब से श्यामाप्रसाद रघुनाथ के इस अहसान का कर्जदार हैं।
'आप क्या इधर - उधर की बातें कर रहे हैं काम की बात पूछो ना 'जानकी ने खिझते हुए कहा।
'हां बारिश् तो कम ही है इस बार ' रघुनाथ ने हाथ से जानकी को शांत रहने का इशारा किया।
'हाँ काका क्या करे अब हम ,कुआँ भी सुख गया अब तो भगवान भरोसे ही है' ।श्यामाप्रसाद ने कहा।
'अच्छा तो श्यामाप्रसाद बच्चियाँ कैसी है '? रघुनाथ ने पूछा।
'आपकी कृपा से सब बढ़िया है काका, इस बार बड़ी बेटी कॉलेज में आ जाएगी और छोटी बारहवीं में 'श्यामाप्रसाद ने उत्साहित होते हुए कहा।
'बहुत बढ़िया, तो मैं क्या कह रहा था कि बिटिया की शादी के बारे में सोचा है कुछ ' रुघुनाथ जनकी की तरफ देखते हुए कहा।
'अरे नहीं काका अभी तो इनके पढ़ने की उम्र है इतनी जल्दी क्या है शादी की ? मैंने तो सोच लिया है अपनी बेटियों को खूब पढ़ाउगा ' । श्यामाप्रसाद की आवाज़ में एक गज़ब का उत्साह था।
'हाँ भाई पढ़ाई -लिखाई तो जरुरी है पर मुझे लगता है तुम्हें कहीं शादी की बात भी चलानी चहिए , आख़िरकार बेटियों को बढ़ते कितना समय लगता है'।रघुनाथ ने कहा।
'हां काका बात तो सही है आपकी,बेटियां जल्द हो जाती है ब्याह लायक '
'तुम्हारी काकी कह रही थी की अगर तुम्हारी बड़ी बेटी हमारी छोटी बहु बन जाए तो कैसा रहे '।रघुनाथ ने हिम्मत करके श्यामाप्रसाद से पूछा।
'अब क्या कहुँ काका इतने बड़े घर से रिश्ता आना तो बड़ी किस्मत की बात है पर राघव के लिए हमारी मीनाक्षी बहुत छोटी है तो..….'
'अरे यही बात तो मैं तुम्हारी काकी को समझा रहा था पर जब से इसने मीनाक्षी बिटिया को देखा बस ज़िद किये हैं वरना राघव के लिए रिश्तों की कमी नहीं '।रघुनाथ ने श्यामाप्रसाद की बात को बीच मैं काटते हुए कहा।
'ये तो आपका बड़पन है काका पर मीनाक्षी का ब्याह अभी नहीं करेंगे '
'हाँ बिटिया को अच्छे से पढ़ाना,ओर कभी किसी चीज़ की जरुरत हो तो मुझे बताना ' । रघुनाथ ने कहा।उसे मन ही मन अपने कहे पर पछतावा हो रहा था ।
'हाँ काका जरूर , अच्छा राम -राम ।'
'राम - राम '।ये कहकर रघुनाथ ने फोन काट दिया।
'क्या कहा उसने 'जानकी ने उत्साह से पूछा।
'उसने कहा कि उसकी बेटी राघव से बहुत छोटी है और वह अपनी बेटी को पढ़ाना चाहता है '। रघुनाथ ने फोन को अपनी बगल में रखते हुए कहा।
'ये सब बहाने है ब्याह ना करने के , इतनी छोटी भी नहीं है उसकी बेटी '। जानकी ने चिड़ते हुए कहा।
'बेटे के मोह में अन्धी ना बनो जानकी तुम जानती हो वह राघव से कई साल छोटी है '। रघुनाथ ने सख्ती से कहा।
'उम्र से क्या फर्क़ पड़ता और कोई कमी तो ना है मेरे राघव में ' । जानकी ने कहा।
' सच कहना जानकी की अगर तुम्हारी कोई बेटी होती तो क्या तुम उसका राघव जैसे लड़के से ब्याह करवा देती ?'। रघुनाथ ने दृढता से कहा।
जानकी ने कुछ तुरन्त तो कुछ नहीं कहा,पर कुछ देर बाद बोली 'आप श्यामाप्रसाद से कहते की आपने उसके लिए कितना किया है क्या वह इसका कर्ज चुकाने के लिए अपनी बेटी का ब्याह नहीं कर सकता'।
'माथा फिर गया है क्या तुम्हारा,श्यामाप्रसाद की मदद गाँव का सरपंच होने के कारण की,वो मेरे पास मदद मांगने नहींं आया था। तुम क्या चाहती हो मैं बेटे के मोह में अपनी बरसो की इजजत मिटी में मिला दूँ '। रघुनाथ ने गुस्से में कहा।
'मैं तो माँ हूँ , मेरा कलेजा तो जलता है ये देखकर की मेरा बेटा बिन ब्याह का घूम रहा है ,उसके साथ के लड़के बाप बन गये ओर उसका अभी घर भी नहीं बसा '। जानकी ने आंसू पोछते हुए कहा।
'जानकी तुम चिन्ता मत करो मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लूँगा '। रघुनाथ ने जानकी को आश्वाशन दिया । जानकी ने अपने आंसू पोछ लिए पर वो रुआसी लग रही थी ।
'भानू बहु को कहो चाय बनाये '।रघुनाथ ने अपने बड़े बेटे लखन के बेटे को कहा जो रघुनाथ के टेक्टर पर बैठा खेल रहा था। अपने दादा की आवाज़ सुनकर वो टेक्टर से उतरकर अपनी माँ इंद्रा को कहने चला गया।
'राम - राम काका ' । बिपिन यादव ने हाथ जोड़कर कहा।
'अरे आओ -आओ बिपिन आज इधर का रास्ता कैसे भूल गये '। रघुनाथ ने कहा। बिपिन शहर के एक सरकारी बैंक में कर्मचारी है। ये रघुनाथ के परिवार के काफी करीबी है।
'राम - राम काकी '।बिपिन ने जानकी से कहा।
'राम - राम,अरे माधो बाबू जी के लिए कुर्सी तो ला '। जानकी ने अपने घर के नौकर को आवाज़ देते हुए कहा।माधो ने बिपिन को कुर्सी लाकर दी , बिपिन उस पर बैठ गया ।
' बहु से कहना मेहमान आए है ' । जानकी ने कहा।
'जी मालकिन '। माधो ने कहा और घर के अंदर चला गया।
' कहो बिपिन कैसे आना हुआ '? रघुनाथ ने पूछा।
' वो मैंने गाँव में नया घर ख़रीदा है तो कागज पर आपके साइन चाहिए ' । बिपिन ने अपने बेग से कागज निकाल कर रघुनाथ को देते हुए कहा।
' अरे वाह तब तो मिठाई भी लानी चाहिए थी '। रघुनाथ ने कागज देख कर हॅसते हुए कहा।
' अरे जरूर काका सब आपका ही तो है एक बार ये कागजी काम हो जाए , फिर उत्सव करेंगे जिसमें आपको सहपरिवार आना है '।
'जरूर आयेगें, ये लो चाय - नास्ता लो '। रघुनाथ ने बिपिन से कहा।इंद्रा चाय - नाश्ता लेकर आ गई थी।
और परोस कर वापस अंदर चली गयीं।
'लखन कहाॅं है? नज़र नहीं आ रहा '। बिपिन ने चाय का कप हाथ में उठाते हुए कहा।
'अरे वो तो खेत मे गया है , अभी आता ही होगा '। रघुनाथ ने कहा।
'जब से खेतीबाड़ी लखन ने संभाली है हम तो चिन्ता मुक्त हो गये हैं '। जानकी ने कहा।
'वैसे एक बात तो कहनी पड़ेगी लखन है बहुत जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी खूब समझता है । वरना जिसके पिता सरपंच हो उसे भला खेत में मजदूर जैसे काम करने की क्या जरूरत' । बिपिन ने कहा।
'हाँ लखन बहुत ही जिम्मेदारा है,और वैसे भी किसान चाहे मंत्री बने या सरपन्च वो अपनी ज़मीन कभी नहीं छोड़ता है ' । रघुनाथ ने गर्व से कहा।
'ओर राघव के क्या हालचाल है कहीं दिखाई नहीं दे रहा' । बिपिन ने पूछा।
' कर रहा होगा कहीं आवारागर्दी।' रघुनाथ ने शर्मिन्दगी से कहा।
'क्या आप भी ,वो भी खेत में ही गया है '। जानकी ने अपने पति की बात काटते हुए कहा।
' तुम्हें ऐसा क्यों लगता है जानकी की तुम्हारे लाडले की हरकतें सब से छूपी हुई है पूरा गाँव उसके कारनामे जानता है '।
'लोगो का तो काम ही होता है दूसरों में गलतियाॅं निकलना , पर जब आप ही ऐसा कहेगेंं तो लोगो को क्या दोष दे '। जानकी ने दुःखी होते हुए कहा।
'मेरे ना कहने से कुछ बदल नहीं जाएगा '। रघुनाथ ने गुस्से से कहा।बिपिन को लगा कि मामला अब गर्म हो रहा है तो उसने बात बदल दी।
'अरे काका ये टेक्टर कब लिया '। बिपिन ने टैक्टर को देखकर पूछा।
'ये तो दो महीने पहले लिया था '। रघुनाथ ने कहा।
'बढ़िया मॉडल है '। बिपिन ने कहा।
' ओर बिपिन बाबू घर पर सब कैसे है ?'। जानकी ने पूछा।
'घर पर सब अच्छा है काकी,मेरे छोटे भाई विक्रम की शादी तय हो गई है अगले महीने है ' । बिपिन ने कह।
'अरे वहां ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई,मैं क्या कहती हूँ बिपिन बाबू कोई लड़की आपकी नज़र् में हो तो राघव के लिए भी बताना'।जानकी ने बड़ी ही आशा के साथ कहा। ये सुनकर रघुनाथ ने जानकी की तरफ आँखे निकली पर जानकी की ममता के आगे उन्हें भी झुकना पड़ा।
'देखो काकी बुरा मत मानना आप तो घर के लोग है इसलिए कह देता हूँ कि रिश्तेदारी में राघव की शादी होना मुश्किल है '। बिपिन ने कहा।
'ये क्या कह रहे हो बिपिन बाबू ,बस उम्र ही तो ज्यादा हुई है फिर भी दिखने में कितना सुंदर लगता है वो '। जानकी ने विश्वास से कहा।
'देखो काकी अगर इंसान में गुण हो तो कुरूप होने के बाद भी शादी हो जाती है पर राघव में गुण ही नहीं है, पूरा दिन वो नशे में धुत रहता है जुआ खेलता है , अब ऐसे जुआरी शराबी को अपनी बेटी कौन देगा तुम बताओ ? गाँव में ऐसा कोई कांड नही है जो इसने ना किया हो।मेरी मानो तो इसकी शादी का ख्याल छोड़ दो।'
'बिपिन मैं तो इसे समझा कर थक गया हूँ ,मेरी सुनने को ये तैयार ही नहीं तुम ही समझाओ अब इसे '। रघुनाथ ने कहा।
'बाबू जी सब समझती हूँ मैं ये सारी बातें पर आप ही बताओ हम बूढा -बूढ़ी कब तक रहेंगे हमारे बाद राघव का ध्यान कौन रहेगा ?'। जानकी ने उदास होते हुए कहा।
'देखो काकी जात-बिरादरी में तो उसकी शादी होगी नहींं, बस एक उपाय है उसकी शादी करवाने का '।बिपिन ने जानकी की चिन्ता को समझते हुए कहा।
'क्या '?जानकी ओर रघुनाथ ने एक साथ कहा।
' हम राघव के लिए दूसरे राज्य से दुल्हन ले आएंगे' बिपिन ने कहा।
'क्या दूसरे राज्य से कैसे ?' जानकी ने असमंजस से पूछा।
' देखो काकी बहुत से लोग होते हैं जिनकी किसी कारण से शादी नहीं हो पाती तो वो लोग दूसरे राज्य से दुल्हन ले आते हैं पैसे देकर, या यूँ कहुँ कि खरीद कर ले आते हैं '।
'क्या ऐसा हो सकता है'?जानकी ने उत्साह से पूछा।
'हा काकी वहां के लोग गरीब होते हैं वो अपना गुजारा नहीं कर पाते तो बच्चों की शादी कैसे करेंगे! इसलिए वो अपनी बेटियों की शादी ऐसे मर्दो से करवा देते हैं जो उन्हें पैसे दे '। बिपिन ने अपनी बात को समझाते हुए कहा।
'तो उनसे हम कैसे बात करे '। जानकी ने पूछा। वो हर हाल में अपने बेटे की शादी करना चाहती है।
'इन सारे कामों में दलाल शामिल होते हैं वो ही सब काम करते है '। बिपिन ने कहा।
'देखो बिपिन बाबू पैसे की कोई चिन्ता नहीं है जितने चाहे उतने ले लो बस राघव का ब्याह करवा दो '। जानकी ने विनती की।
'पर काकी वो आपकी जात की ना होगी '।
'आज के ज़माने में क्या जात-पात,तुम बस बहु ला दो '।जानकी ने कहा।ओर वैसे भी जहा बात अपने स्वार्थ की आती है वहां इंसान सब जात- पात को भूल जाता है।
' ठीक है फिर मैं एक ऐसे आदमी को जनता हूँ जो इस तरह की शादी करवाते है । आप जब कहो मैं आपको उससे मिलवा देता हूँ,क्यों काका क्या कहते हो ?'। बिपिन ने रघुनाथ को चुप देखकर पूछा।
'मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा बिना जात की बहु आएगी तो बरसो की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।गाँव वाले थूकेंगे'। रघुनाथ ने चिन्तित होते हुए कहा।
'अब लोगो का काम बोलना है वो तो बोलेंगे ही ओर वैसे भी मुँह पर तो कोई बोलेगा नहीं पीठ पीछे तो राजाओं की भी बुराई होती है ,हमें उससे क्या?'। जानकी ने बेपरवाह होकर कहा।
'कहना आसान है जानकी ' । रघुनाथ ने आहत होकर कहा।
'आप लोग लखन को ओर पूछ लेना उसके बाद मुझे फोन कर देना मैं दलाल को लेकर आ जाऊंगा, अच्छा अब चलता हूँ '। ये कहकर बिपिन चला गया।
बिपिन के जाने के बाद दोनों पति -पत्नी इसी सोच में डूब गये की क्या करे और क्या ना करें । शाम को जब लखन खेत से आया तो उन्हीने बिपिन से हुई बातचीत के बारे में उसे बताया।
'नहीं मुझे तो बिल्क़ुल सही नहीं लगता,एक तो वो लड़की हमारी जात की नहीं दूसरा हम अपने स्वार्थ् के लिए किसी कि ज़िन्दगी कैसे खराब कर सकते हैं।'लखन ने अपनी बात रखते हुए कहा।
'मैं कुछ नहीं जानती,मुझे बस राघव की शादी करवानी हैम्व्प्
'। जानकी ने कहा।
'क्यों माँ…….'।
'साहब राघव बाबू को ले आया हूँ आज ये हीरा के खेत के पास गिरे हुए मिले '। माधो अपने कंधे पर राघव को संभाले हुए था।
'ले जाकर कमरे मैं पटक दो इस बेवड़े को '। लखन ने गुस्से से कहा।
'जी मालिक '। ये कहकर माधो राघव को कमरे में सुलाने चला गया।
'देखा आप लोगों ने क्या अब भी इसकी शादी करवाना चाहते हो'।
'देख लखन चाहे तुझे पसंद हो या ना हो राघव की शादी तो मैं करवा कर रहूँगी '। जानकी ने दृढता से कहा।
'ठीक है माँ आपके इस पाप में मैं भागीदार नहीं बनुगा, मै किसी कि ज़िन्दगी बर्बाद होते हुये नही देख सकता । ं अपने बीवी बच्चो को लेकर खेत में बने मक़ान पर चला जाऊंगा '। लखन ने ये कहा और अपने कमरे में चला गया।
'जैसी तुम्हारी मर्जी '। जानकी ने कहा। जानकी के ऊपर बस राघव की शादी करवाने का भूत सवार था। रघुनाथ की भी जानकी के हठ के आगे एक ना चली । उसे बिपिन को शादी की बात आगे बढ़ाने के लिए कहना पड़ा।